Wednesday, July 22, 2009

उडान उम्मीद की


दिल चला है , दिल चला है !
अंजान मंजिलों के सफर पर निकल पड़ा है !
आसमां को पाने की चाह में ,
पंख पसारे तैयार खड़ा है!

तोड़ के बन्धनों के पिंजरे ,
आजाद गगन में उन्मुक्त उडा है!
छु पाए न दर्द की परछाई जहाँ पर ,
उन उचाइयों के सफर पर निकल पड़ा है!

इतिहास की परछाई छोडे
खुशियों के उजाले ढूंढे पड़ा है!
उठती गिरती भावनाओं के भवर से,
बहार आने को लड़ रहा है!

उज्जवल भविष्य की उम्मीद के तिनके,
संभाले तूफानों में भी बढ़ रहा है!
मिलेगी इसे भी रहा कभी तो,
इस ख्याल में अडा हुआ है!

दिल चला है , दिल चला है!
अंजान मंजिलों के सफर पर निकल पड़ा है!














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