Saturday, August 1, 2009

कैसी है मुश्किलें कैसी है डगर


फ़िर बात आ पाई दिल की जुबान पर,
हे गए आरमान फ़िर आंखों के द्वार पर!
जाम से भी आँसू छलके,
मदहोशी भी न कर पाई दिल की धड़कन को हलके!

सपने जो लगने से लगे थे अपने,
टूटे ऐसे की बटोर भी न पाए थे तिनके!
महफिलों में भी है तनहाई का आलम,
मन में है उदासी, आँखे है नम!

दुआ न कोई दवा है,
जख़म ऐसा दिल पे लगा है!
करें भी तो क्या करें? किस्मत का सारा खेल है,
ऊपर वाले ने ज़रूर किया कुछ घाल मेल है!

अभी भी न जाने क्यों है आग सी लगी,

वक्त बदलने की तड़प जाग उठी!

पर जानू न कैसी है मुश्किलें कैसी है डगर,

मंजिल की तलाश में तै करना है अनजान सफर!