
फ़िर बात आ न पाई दिल की जुबान पर,
रहे गए आरमान फ़िर आंखों के द्वार पर!जाम से भी आँसू न छलके,
मदहोशी भी न कर पाई दिल की धड़कन को हलके!
सपने जो लगने से लगे थे अपने,
टूटे ऐसे की बटोर भी न पाए थे तिनके!
महफिलों में भी है तनहाई का आलम,
मन में है उदासी, आँखे है नम!
दुआ न कोई दवा है,
जख़म ऐसा दिल पे लगा है!
करें भी तो क्या करें? किस्मत का सारा खेल है,
ऊपर वाले ने ज़रूर किया कुछ घाल मेल है!
अभी भी न जाने क्यों है आग सी लगी,
वक्त बदलने की तड़प जाग उठी!
पर जानू न कैसी है मुश्किलें कैसी है डगर,
मंजिल की तलाश में तै करना है अनजान सफर!